एक कविता रूठी है..

बिखरी वित्ति या कंजरे ख्याल में,
पास कहीं जनता की चाह से दूर,
और दूर कहीं पास दिल में,
किताबों के ज़ख़ीरे को कोसती,
रद्दी में सिमटी,
चंदन के बाज़ार में,
बबूल सी लाचार,
चम-चमाते मसनद के रुतबे से ख़फ़ा
बेडरूम में मैले पिचके तकिये सी,
खान मार्केट के ऑरा से दूर,
मंगल बाजार के ‘हर माल 10 रुपये’ सी,
स्टार प्लस,कलर्स की TRP से बहकी,
लाइफ ओके सी,
शेयर इट के भौकाल में,
ब्लूटूथ सी,
नेहरू प्लेस के जुगत हब में,
कपड़ो के ठेले सी,
कटती नस और टूटे हुए दिल की
“गहराई” को मापती तालियों से जुदा,
तीन लाइक्स और उनके पीछे की जहालत में,
एक कविता रूठी है..