प्यार। इस शब्द की थाह,संकल्पना मेरी समझ से परे है।
अनायास लिख लेता हूँ इस विषय पर ,किन्तु इस बात की पुष्टि तो स्वयं मैं भी नहीं कर सकता कि मुझे पहले कभी प्यार हुआ है या नहीं ।
शायद इसमें मेधा का कोई लेना-देना नहीं होता,पर मुझे क्या मालूम ? मैं ठहरा एक सादा सा प्राणी जिसे इस भाव से वंचित रहना रास आया और कभी ख़ास कोशिश भी नहीं की अपनी “भ्रमचारी” अवस्था बदलने की।
सच कहूं तो मुझे जो चीज़ दिखती है मैं उसे ही स्वीकारता हूँ।फिर चाहे कोई मेरी नास्तिकता पर भौं सिकोड़े,या समाज में यथेष्ट रूप से अच्छाई न दिखने पर निराशावादी की उपाधी दे,मोये फर्क न पड़ता भाईसाब।
मुझे प्यार नहीं दिखता।
मुझे दिखाई देता है तो सिर्फ जालसाज। इन नकाबपोशों की मुहब्बत को सिर्फ दूसरे नकाबपोश या अपनी ज़िंदगी से ख़फ़ा हो चुके बहके लोग ही भाव दे सकते हैं ,मैं नहीं।
बस बचते हैं तो कवि,ये वो सितम के मारे लोग हैं जिनकी मुहब्बत मुकम्मल नहीं हुई,होती तो कवि कैसे बनते जनाब। मैं अपने आप को कवि नहीं मानता क्योंकि इसका मेनस्ट्रीम कल्चर मेरे लिए नहीं बना,और सच कहूं तो मेरे बस की भी नहीं है। बहुत ईमानदार और हिम्मत वाले हैं ये लोग जो अपने अंदर की त्रासदी को बेजोड़ परोसते हैं।इन्होंने पचड़े खाये हैं, पापड़ बेले हैं और बदले में बस खीज ही नसीब हुई। कहने को तो ये एक-आद कविता गढ़ लें के ये ख़ुश हैं क्योंकि ‘वो’ ख़ुश हैं, पर घंटा खुश हैं ये कवि।मेरे प्यारे कवि,तुम्हें मेरा फ़िर से नमन।
ख़ैर,चोट खाये हुए कवियों की तादाद ज़्यादा है। केवल यही लोग हैं जो मुझे बड़ी ईमानदारी से अपने ज़ख्म उजागर करते हुए दिखते हैं। वापस आते हैं असल बात पर,जब मैं कहता हूं कि मुझे प्यार नहीं दिखता तो इसका मतलब है कि मुक्कमल प्यार। यहां मेरे प्रिय कवि भी हार चुके हैं।
मुझे प्यार कतई नहीं दिखता,दिखाई देता है तो सिर्फ एक आईडिया जिसके पीछे भागती है भीड़। जिसे बचपन से यही बताया गया है कि प्यार होता कैसे है। लोग उन बातों के पीछे भागते हैं,प्यार के नहीं।
“अरे मियां,ये तो बस हो ही जाता है “
अहम-अहम,हो ही जाता होगा,मोये का मालूम? मैं ठहरा गवार।
पर ये सब बातें आज से पहले की हैं।
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इस गवार को आज सुबह से पहले ज्ञात नहीं था कि सिर्फ एक मंज़र ही काफ़ी होता है फ़लसफ़ा ज़ेहन में बैठाने के लिए।इस गवार ने आज कुछ देखा।
बात है सुबह की,ये गवार अपनी बेहद बोरिंग ज़िन्दगी की दिनचर्या के बीच में था।
गवार की क्रिया अनुसूची : उठना,लाइब्रेरी में पढ़ना, कोचिंग जाना,फ़िर लाइब्रेरी में पढ़ना और वापस घर की ओर प्रस्थान करना।
ज़ाहिर सी बात है इस सूची में सफ़र का काफ़ी महत्व है।
मेट्रो में 2 घण्टे तो निकलते ही हैं। तरह-तरह के लोग दिखते हैं। बाहों में बाहें फ़ैलाये प्रेमी युगल भी।
ये साला प्यार क्यों नहीं दिखता ?
क्योंकि मैं गवार हूँ।
मैंने जो बचपन से देखा है उससे इतना ही जाना है कि इंसान को खूबसूरती भाती है। हम प्यार में हैं क्योंकि दूसरा खूबसूरत है। वो अगर क्लासी निकले तो क्या ही बात। मैं इसका दोषी हूँ, पर मैं ठहरा गवार!
जल्दी ही उबर गया। इस गवार को बहुत जल्द एहसास हो गया कि बेटा वो जो तुम्हें हुआ है ना वो कॉन्सेप्ट से लगाव हुआ है,ये प्यार वगैरह तुम्हारे बस में नहीं।
तुम्हें बताया गया था कि प्यार में पड़ने का सबसे पहला स्टेप होता है सफेद चेहरा ढूंढना। (यहाँ पर ज़ोरदार हमला हो चुका है,समझ लो)
मैं आज यही ऐंठ लिये घूम रहा था कि ये सब धोखा है,लोगों को भी प्यार नहीं होता/दिखता, बस अपने आप को सांत्वना देने के लिए मुखौटा ओढ़े ख़ुश हैं।
हमेशा की तरह आज भी सफ़र कर रहा था।एक लड़का और लड़की साथ में हंस रहे थे और दोनों ने चश्में लगाए हुए थे,काले चश्में। पर आज कुछ अलग हुआ,आज मेरे अंदर खुजली नहीं हुई उन्हें प्रेमी युगल घोषित करने की और उनसे तुरंत ध्यान हटाने की जो मैं हमेशा करता हूं।
उनके चेहरे पर थी असीमित मुस्कान जो इतनी ईमानदार थी कि मैं भी मुस्करा पड़ा।
उनका चश्मे पहनकर एक दूसरे की ओर बिना देखे बतियाना और मुस्करा जाना इस गवार को पसंद आया और इतना पसंद आया कि फोन में रॉक से सीधा स्लो संगीत बजने लगा।
गौर करने की बात ये थी कि दोनों ने इस पूरे वक्त एक दूसरे का हाथ पकड़ रखा था जो बता रहा था कि ये वो ‘सफेद’ वाला नहीं है। ये भरोसे वाला था जानी।
उनकी केमिस्ट्री देखते ही बन रही थी। फ़िर अगले स्टेशन से पहले आवाज़ गूंजी ” अगला स्टेशन विश्वविद्यालय है..”। वो एक दूसरे का हाथ थामे,एक दूसरे पर भरोसा रखते हुए गेट की ओर आगे बढ़े।
बेहद शांत तरीके से छड़ी हाथ में लिए आस-पास की चीज़ों को महसूस करते हुए वो आगे निकल गए।
कहने को तो मुझे अगले स्टेशन पर उतरना था पर इस गवार पर आज उसका बस नहीं था।
पहले सीढ़ियां और फ़िर निकास द्वार,मुस्कराते हुए,खिल-खिलाते हुए,चह-चहाते हुए,एक दूसरे का हाथ थामकर उन्होंने पार किया और मैं बस उन्हें देखता रह गया।
हां, उन दोनो को आंखों की रौशनी को गए अरसा हो चुका था। हां,वो सबसे ज़रूरी चीज़ देख सकते थे।
ये वो लोग थे जो इस गवार को ज़िन्दगी भर की सीख दे गए,ये वो लोग थे जो इस गवार को दृष्टि दे गए।
ये वो थे जिन्होंने प्यार शब्द को लड़का-लड़की से परे एक बेहद जनरल पहलू दिया।
ये वो थे जिन्होंने शायद कभी कांसेप्ट के बारे में सुना ही न हो,इन्होंने बस भरोसा कमाया था।